26 दिसम्बर 2004. इतिहास की वो तारीख जब ऐसी तबाही मची जिसने दुनिया के कई देशों में लाशें बिछा दीं. हिन्द महासागर में ऐसी सुनामी आई जैसी पिछले 40 सालों में नहीं देखी गई. 9.1 तीव्रता वाले भूकंप के कारण समुद्र में 65 फीट ऊंची लहरें उठीं. इस सुनामी के कारण अकेले भारत में 12 हजार 405 लोगों की मौत हुई. 3,874 लोग लापता हो गए. इतना ही नहीं 12 हजार करोड़ रुपए के नुकसान की बात सामने आई.
19 साल पहले क्रिसमस का जश्न मनाकर लोग चैन की नींद सो रहे थे. समुद्रतटों के किनारे वाले देशों में टूरिस्ट बड़ी संख्या में पहुंचे थे. भारत में भी यही स्थिति थी. अगले दिन सुबह 6.28 के बीच समुद्र की खूबसूरत लहरों ने ऐसा विकराल रूप धरा कि तहलका मच गया. भारत समेत हिन्द महसागर किनारे के 14 देशों में तबाही का असर दिखा. पुल, इमारतें, गाड़ियां, जानवर, पेड़ और इंसान समुद्री की लहरों पर तिनकों की तरह बहते हुए नजर आए.
भारत में सबसे ज्यादा 8 हजार से अधिक मौतें तमिलनाडु में हुईं. वहीं अंडमान-निकोबार में 3 हजार 515 मौते हुईं. इसके अलावा पुड्डुचेरी में 599, केरल में 177 और आंध्र प्रदेश में 107 मौतें हुईं. पड़ोसी देश श्रीलंका में 13 और मालदीव में 1 भारतीय की मौत हुई. कुल 14 देशों में मरने वालों की संख्या बढ़कर 2 लाख से अधिक पहुंच गई थी.
सुनामी के दौरान पानी की ऊंची लहरें 800 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ्तार से तटीय इलाकों में पहुंची. लोगों को संभलने का मौका ही नहीं मिला. इंडोनेशिया के बाद सबसे ज्यादा नुकसान श्रीलंका में हुआ. यहां 35 हजार से ज्यादा मौते हुईं. सैकड़ों मछुआरे लापता हो गए. इससे पहले ऐसी प्राकतिक आपदा चीन में आई थी. 1931 में चीन में आई बाढ़ के कारण 10 लोगों की मौत हुई थी. वहीं, 1970 में बांग्लादेश में आए साइक्लोन ने 3 लाख जानें ली थीं.
इस सुनामी के कारण सबसे ज्यादा नुकसान इंडोनेशिया में हुआ क्योंकि यही सुनामी का केंद्र था. इंडोनेशिया के उत्तरी भाग में स्थित असेह में भूकंप आया. इस भूकंप के कारण समुद्र के भीतर उठी सुनामी ने भारत सहित कई देशों में भारी जमकर तबाही मचाई. सबसे ज्यादा मौतें भी इंडोनेशिया में हुईं. यहां 1.28 लाख लोग मरे और 37 हजार से ज्यादा लापता हो गए.
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